
आज अजीब सी ख्वाहिश उठी है मन में. कोई मुझे टूट कर चाहे और मैं बेवफा निकलूँ!

तुम खुद उलझ जाओगे मुझे राम देने की चाहत में, मुझमे हौसला बहुत है मुस्कुराकर निकल जाऊँगा

मेरे जज्बात की कदर ही कहाँ, सिर्फ इलज़ाम लगाना ही उनकी फ़ितरत है

बदल गए हैं मायने अब हर रिश्तों के, अब रिश्तों का मतलब सिर्फ’ मतलब ‘ ही होता है

मेरे साथ नहीं तो कही और सही, वह महफूज हैं यही काफ़ी हैं

कुछ ऐसे हादसे भी होते हैं जिंदगी में, इंसान बच तो जाता है मगर जिंदा नहीं रहता

ज़िन्दगी में कोई भी चीज़ इतनी नहीं बिगड़ती की उसे ठीक ना किया जाय