
अपने गुनाहों पर सौ पर्दे डालकर, हर शख़्स कहता है की ज़माना खराब है

वफ़ादार और तुम..? ख़्याल अच्छा है, बेवफ़ा और हम.. इल्ज़ाम भी अच्छा है

हर किसी के हाथ में बिक जाने को तैयार नहीं है ये मेरा दिल है, तेरे शहर का अखबार नही

मेरा मयार नहीं मिलता, मैं आवारा नहीं फिरता, मुझे सोच कर मैं दोबारा नहीं मिलता…!

उनको उलझा कर कुछ सवालों हमने जी भर उनका दीदार कर लिया

न जाने कैसी नजर लगी है ज़माने की, वजह ही नहीं मिल रही मुस्कुराने की….!!

अगर निखरना है, तो बिखरना ही पड़ेगा